पश्चिम बंगाल हीमोफीलिया कॉन्क्लेव 2025 ने हीमोफीलिया से मरीजों के लिए प्रोफिलैक्सिस(बीमारी की रोकथाम) को उपचार का मानक बनाने का आह्वान किया
कोलकाता 22 जून : भारत भर में हीमोफीलिया के मरीजों (PwH) के लिए प्रोफिलैक्सिस (बीमारी की रोकथाम) को मानक चिकित्सा उपचार के रूप में अपनाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता उजागर करने के लिए, अग्रणी हेमेटोलॉजिस्ट, सरकारी प्रतिनिधि और रोगियों के हितों के समर्थक कोलकाता में हेमकेयर (HEMCare) (हीमोफीलिया केयर एंड रिसर्च) द्वारा आयोजित पश्चिम बंगाल हीमोफीलिया कॉन्क्लेव 2025 में एकजुट हुए।
प्रो. डॉ. मैत्रेयी भट्टाचार्य, निदेशक, हेमेटोलॉजी और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन संस्थान के नेतृत्व में आयोजित इस एक-दिवसीय कॉन्क्लेव में हीमोफीलिया उपचार और नीति के प्रमुख विशेषज्ञ एकत्रित हुए और सभी ने मिलकर एक ही संदेश दिया: हीमोफीलियाके मरीजों की जीवन गुणवत्ता में वास्तव में सुधार करने और दीर्घकालिक विकलांगता कम करने के लिए प्रतिक्रियात्मक चिकित्सा की जगह निवारक देखभाल पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
प्रो. डॉ. मैत्रेयी भट्टाचार्य, निदेशक, हेमेटोलॉजी और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन संस्थान, कोलकाता ने हीमोफीलिया उपचार में नवीन चिकित्सा पद्धतियों की परिवर्तनकारी भूमिका पर जोर दिया। "भारत ने हीमोफीलिया उपचार में उल्लेखनीय प्रगति की है, और कई उपचार केंद्रों में जरूरत के समय इलाज के बजाय बचाव के तरीके अपनाने की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल ने प्रोफिलैक्सिस पर ध्यान केन्द्रित करने वाला दृष्टिकोण अपनाया है। हालांकि, इस प्रगति के बावजूद, अभी भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। हालांकि इस प्रगति ने रक्तस्राव की घटनाओं में कमी लाई है, फिर भी समग्र जीवन गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार अभी शेष है।“
एमिसिज़ुमाब के आने से हीमोफीलिया ए के कई मरीजों के इलाज के तरीके में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। इसे देना आसान है और इससे रक्तस्राव की घटनाएं कम हो गई हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता में स्पष्ट सुधार देखा गया है। इससे बच्चे बिना रुकावट स्कूल जा सकते हैं और वयस्क अधिक स्वतंत्रता से जीवन जी सकते हैं। भारत में, जहां केवल 20,000 हीमोफीलिया रोगी आधिकारिक रूप से पंजीकृत हैं, अनुमानित संख्या 1.5 लाख से अधिक है। एमिसिज़ुमाब, चाहे रोगियों में अवरोधक प्रोटीन (इनहिबिटर) उपस्थित हों या नहीं, हीमोफीलिया से पीड़ित सभी मरीजों के लिए आशा की नई किरण बनकर उभरी है।
एमिसिज़ुमाब जैसे नॉन-फैक्टर रिप्लेसमेंट उपचार के माध्यम से प्रोफिलैक्सिस को लंबे समय से हीमोफीलिया देखभाल में वैश्विक स्वर्ण मानक माना जाता रहा है। लेकिन भारत में अभी भी ज्यादातर मरीजों का इलाज तब होता है जब खून बहना शुरू हो जाता है, जिससे जोड़ों को स्थायी नुकसान होता है और मरीज विकलांग हो जाता है।
वैश्विक स्वर्ण मानकों के प्रति अनुरूपता की आवश्यकता पर जोर देते हुए, प्रो. डॉ. प्रकाश कुमार मंडल (डीएम हेमेटोलॉजी), हेमेटोलॉजी विभाग, एनआरएस मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, कोलकाता ने कहा "हीमोफीलियाउपचार में प्रोफिलैक्सिस आदर्श बनना चाहिए—अपवाद नहीं। रक्तस्राव की हर घटना पर ध्यान दिया जाना चाहिए। चाहे वह जोड़ का रक्तस्राव हो, मांसपेशी का रक्तस्राव हो, सीएनएस रक्तस्राव हो या देखने की क्षमता को खतरे में डालने वाला आंख में होने वाला रक्तस्राव हो—प्रत्येक घटना दीर्घकालिक असर डालती है और अक्सर ऐसे नुकसान की ओर ले जाती है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता। भारत में मरीजों को अच्छे नतीजे नहीं मिल रहे। इसकी मुख्य वजहें हैं - फैक्टर VIII के अवरोधक, इलाज में देरी, और प्रोफिलैक्सिस की कमी।
एक्सटेंडेडहाफ-लाइफ (EHL) उत्पादों, एमिसिज़ुमाब और कृत्रिम क्लॉटिंग फैक्टर (रीकॉम्बिनेंट फैक्टर) जैसी प्रगति के बावजूद, इन नई तकनीकों का फायदा अभी भी बहुत कम लोगों को मिल पा रहा है। परिणामस्वरूप, भारत में प्रोफिलैक्सिस अपनाने की दर केवल 4-5% है, जबकि वैश्विक स्वर्ण मानक अपना चुके देशों में यह दर95% के करीब है।इसका नतीजा साफ है: जब भी किसी मरीज का खून बहता है और उसे इलाज नहीं मिलता, तो उसे 15.5 दिनतक चलने वाली स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। समय के साथ, इसके कारण जोड़ों को काफी अधिक नुकसान होता है, गतिशीलता कम हो जाती है, और गंभीर हीमोफीलिया वाले लोगों के लिए जीवन प्रत्याशा में 23 साल की विनाशकारी हानि की स्थिति बनजाती है।
हम सभी को मिल जुलकर शून्य रक्तस्राव का लक्ष्य पाने का प्रयास करना चाहिए। समय पर निदान, शीघ्र उपचार, और सुलभ व वहनीय देखभाल के माध्यम से, हम जटिलताओं की आशंका को प्रारंभ होने से पहले ही समाप्त कर सकते हैं। जब प्रभावी उपचार मौजूद है तो किसी भी बच्चे या वयस्क के लिए विकलांगता या मृत्यु की स्थिति नहीं बननी चाहिए। अब बीमारी उभरने पर किए जाने वाले प्रतिक्रियात्मक देखभाल उपचार की बजाय पहले से बचाव करने पर ध्यान देना होगा, ताकि केवल कुछ लोगों को ही नहीं बल्कि सभी को प्रोफिलैक्सिस का लाभ मिले।
"वॉइसेजदैट मैटर: ड्राइविंग इम्प्रूवमेंट्स इन क्वालिटी एंड एक्सेस" शीर्षक सत्र के दौरान, श्री अजय रॉय, सचिव, हीमोफीलिया सोसाइटी, दुर्गापुर चैप्टर ने हीमोफीलिया से मरीज़ों के जीवन की वास्तविकताओं पर अपनेविचार व्यक्त करते हुए कहा: "बहुत लंबे समय से, भारत में हीमोफीलिया के मरीज़ों को न सिर्फ़ बीमारी का सामना करना पड़ता है, बल्कि समय पररोग का पता न चलना, नियमित उपचार न मिलना और लोगों में इस बारे में जागरूकता का अभाव जैसी व्यवस्था की कमियों जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ता है।" यह सुनिश्चित करना रोगियों के हितों के लिए आवाज उठाने वाले हम लोगों की जिम्मेदारी है कि सरकारी नीतियों और प्रोटोकॉल के शोर में उनकी समस्याओं को नज़रअंदाज़ न किया जाए। असली प्रगति तब मानी जाएगीजब इलाज सिर्फ़ समस्या आने पर न हो, बल्कि सरकारी सहायता से नियमित बचाव का इंतज़ाम हो—यानी पहले से तैयारी रखी जाए, बाद में भागदौड़ न करनी पड़े।“
इसी सत्र में श्री प्रसांत मल, कोषाध्यक्ष, हीमोफीलिया सोसाइटी, कोलकाता चैप्टर ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा, "हीमोफीलिया होने का मतलब यह नहीं होना चाहिएकि ज़िंदगी में पाबंदियाँ हों। अचानक खून बहने की वजह से परिवार मानसिक और आर्थिक दबाव झेलते रहते हैं। इलाज के नए तरीकों से नियमित देखभाल करके, हम एक नई शुरुआत कर सकते हैं—संकट से बचने के लिए भागदौड़ करने के बजाय पहले से ही सामान्य जीवन की गारंटी दे सकते हैं। सरकार को इसे अपने देश के मानव संसाधनोंमें किए गए रणनीतिक निवेश के रूप में समझना चाहिए।"
नीति और जन समर्थन पैनल की चर्चा के दौरान प्रो. डॉ. नंदा किशोर अल्वा, डीन, ईएसआईसी जोका ने व्यापक व्यवस्था के नज़रिए से मेडिकल शिक्षा और संस्थानों के सहयोग की अहमियत बताई। "यह बहुत जरूरी है कि हमारे चिकित्सा संस्थान न केवल उपचार करें बल्कि लोगों को शिक्षा भी दें। उपचार का टिकाऊ मॉडल बनाने के लिए, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को प्रशिक्षित करने और प्रोफिलैक्सिस के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश करने के दोनों कार्य साथ-साथ किए जानेचाहिए।"
इस कॉन्क्लेव ने विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अंतर्गत, सभी के लिए समान रूप से उपलब्धता सुनिश्चित करने और मरीजों के स्वास्थ्य परिणामों में समुचित सुधार को प्रोत्साहित करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे के भीतर प्रोफिलैक्सिस को शामिल करने का पुरजोर समर्थन किया। कॉन्क्लेव ने पूरे पश्चिम बंगाल में हीमोफीलिया देखभाल के लिए मजबूत और समावेशी ढांचा तैयार करने हेतु विभिन्न हितधारकों के बीच निरंतर सहयोग की अनिवार्यता पर जोर दिया।
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